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वह चली हवा के झोके सी

छा गयी घटा घनघोर बहुत
मै थोर रहा वह रही बहुत ।
ऑगन की तुलसी बना लिया
जो नागफनी से रही बहुत ।।

ठग लिया भरोसा दे करके
वह जीत गयी ना-ना करके ।
मै उलझा था समझाने में 
वह चली गयी विन हा करके ।।

तरुवर के फूल लगे चुभने
अम्बर से सोम लगे झरने ।
नदियाँ चिग्घाड मचाती है
उपवन लगता मरघट बनने ।।

ऑशाये शिशकिया भरती है
इच्छाये घुट-घुट मरती है ।
ऐसा जीना भी क्या जीना
जब जलन हृदय मे चलती है ।।
डा दीनानाथ मिश्र

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1 Comments

madhura

07-Jul-2024 10:22 AM

Amazing

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